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मंगलवार, 29 जनवरी 2008

हरा मंगली एलियन

खबर है कि नासा द्वारा जारी चित्रों में मानव सदृश हरा एलियन लाल ग्रह की पहाड़ी से उतरता दिखाई दे रहा है। देखा जाए तो खबर में कुछ भी खास नही लगता है क्योकि विगत सैकड़ो वर्षो में मंगल पर मानव होने न होने संबंधी लाखो दावे-प्रतिदावे किये जा चुके है, पर अपने खबरची तो खबरची ठहरे जिसे चाहे खास बना दे जिसे चाहे खाक, वैसे भी विज्ञापनों के बीच छोटी-मोटी खबरे छापना उनकी पुरातन मजबुरी ठहरी। उधर मीडिया को भी स्टूडियों बैठे “ब्रेकिंग न्यूज” हाथ लगी, आखिर कडी प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिये चौबीसो घंटे सनसनीखेज-रोमांचकारी खबरे दिखाते रहना बाजार की डिमांड ठहरी।

वैसे सनसनी फैलाने का आजकल फैशन है, मीडिया के अलावा बुश टाईप राष्ट्रपति, उनके ओसामा छाप आतंकवादी, मोदीत्ववादी राजनेता इस फैशन के आज सबसे बडे पैराकार है। वैसे ये लिस्ट बहुत बडी हो सकती है पर इस लिस्ट में भारत की सर्वोच्य न्यायालय का नाम नया-नया जुडा है। खबर ये भी है कि सर्वोच्य न्यायालय ने अपनी न्यायिक (अति) सक्रियता के रिकार्ड को बरकरार रखते हुवे पिछले दिनो “समाजवाद” शब्द की जो व्याख्या दी उससे सारे देश में सनसनी फैल गयी, एक तरफ फार लेफ्टीस्ट-समाजवादी-सोशलिस्ट-गांधीवादी उत्तेजित है तो दुसरी तरफ फार राईट, सेंटर राईट उत्साहित। पर ये बात कबीरा की समझ से परे है कि इन खबरो से हमारे मोहल्ले के छुटभय्ये भला क्यो उत्तेजित-उत्साहित है?

पुराने गिले शिकवे भुलाकर गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर फार लेफ्ट से फार राईट, जी.ओ. से एन.जी.ओ., भगवा पार्टी से पंजा पार्टी, हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई-… सभी धर्मो के छटे हुवे कट्टरपंथी चौपाल पर एकत्रित हुवे। खबर लगते ही कबीरा भी चौपाल पर जा धमका। वहा भगवा पार्टी के प्रवक्ता अपने प्रवचन में कह रहे थे कि वे और उनकी पार्टी उत्साहित है क्योकि “समाजवाद” की शपथ लेने का पिंड छुटने के आसार नजर आने लगे है आखिर एक घोर दक्षिणपंथी पार्टी के लिये समाजवाद की दुहाई दिलवाये जाने ज्यादा अपमानजनक क्या हो सकता है? वैसे शपथ लेना व तोडना तो हम आजादी के बाद से ही करते आये है लेकिन हाँ इस बात का जरूर इतिहास गवाह है कि विदेशी राज में कभी शपथ लेकर न तोडी? शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के कानून पर वोटबैंक का खयाल कर हमारी पार्टी को सहमति देनी पडी, लेकिन भला हो सर्वोच्य न्यायालय का जो उसने संसद के इस अहम् फैसले पर रोक लगवा दी। उधर हाल ही में सुप्रिम कोर्ट ने अपनी एक अन्य व्याख्या में सरकार को एटमी करार समझौता संसद के समक्ष रखने से मुक्त कर हमें एक बार पुन: भारी धर्मसंकट से बचा लिया। अगर इन लाल झंडे वालो की चल जाती तो संसद तो छोडो अमेरीका में भी बेवजह हमारी भारी फजीहत हो गयी होती। चलो अंत भला तो सब भला! अरे थोडी पुरानी बात है इसी न्यायालय ने हिन्दूत्व को एक जीवन प्रणाली बताकर हम अस्पृश्यो की सांप्रदायिक राजनीति को कानूनी जामा पहनवा दिया, अगर आगे इसी तरह संविधान की अन्य अवधारणा जैसे धर्मनिरपेंक्षता को भी हटवाने में मदद मिले तो मजा आ जाये। अगर ऎसा संभव हुआ तो हम वादा करते है कि देश में संसद के स्थान पर सर्वोच्य न्यायालय का शासन स्थापित करने के लिये धर्मयुद्ध छेड देंगे। अब आते है दुसरे महत्वपूर्ण मुद्दे पर, वैसे तो हमारी भगवा पार्टी का विज्ञान से भला क्या लेना देना हम तो ठहरे आध्यात्म के पुजारी। लेकिन जब बात नासा के चित्रो की आयेगी तो उसपे कुछ कमेंट तो किया ही नहीं जा सकता हैं। अमेंरीका में इतने इंडियन जा चुके है कि आज अमेंरिका मिनी इंडिया बन चुका है, और नासा के अधिकांश कर्मचारी तो इंडियन ही है अब कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स को कौन नहीं जानता हैं? अरे हम तो रामसेतु को जानते तक नहीं थे ये तो भला नासा वालो का जिन्होंने सेतु के विहंगम चित्रों को नेट पर जारी किया। अरे हमारे बजरंगीयो ने फ्रेम करा इन चित्रो को बेच-बेचकर ही इतना पैसा बना लिया की भंडारे के लिये चंदा उगाहने की जरूरत कम-से-कम अगले चुनावो तक तो न ही पडेंगी। अभी हमारे इस्कान के वैज्ञानिक भी इस खोज में लगे है कि मंगली एलियन का भारतीय धर्म-आध्यत्म से क्या तारतम्य बैठाया जा सकता है और हमें यकीन है कि रामसेतु के ही समान वे शीघ्र ही इस मिशन को भी सफलतापूर्वक पुरा कर लेंगे। लेकिन लगता है सर्वप्रथम किसी चाईनीज वेब में छपे इन चित्रों में कुछ मेनुपुलेशन जरूर किया गया है एक तो ग्रह का रंग लाल दिखाई दे रहा है जिसपर हमारे इस्कानिया बंधुओ का आग्रह है कि इसे केसरिया या भगवा होना चाहिये और एलियन का रंग हरा ही क्यों है यह भी जांच का विषय है। अरे खोजबीन की कोई जरूरत नहीं है मुझे तो इसमें चीन-ईरान की साजिश नजर आ रही है उन्होंने ही ग्रह का रंग लाल और एलियन का रंग हरा कर दिया है। नासा का अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है स्पष्टीकरण आ भी जाये तो क्या, रामसेतु के समान एलियन का सच भी हम कैसे भी करके अपने पक्ष में करके रहेंगे, वैसे भी हरे को भगवा और मंगल को गुजरात बनाने के लिये हमारे पास मोदीजी जैसे चमत्कारी नेताओ की कमी थोडे ही है। लेकिन कसम राम की खाते है मंगल तो छोडीये इन विदेशी आक्रंताओ को तो हम जहन्नुम भी नसीब न होने देंगे। जहा देखो वहा पहुच जाते है ये कटु.....

भगवाई की बात से खफा हो हमारे भाईजान तमतमा कर बोले चित्र मेनुपुलेट करना तो छोडिये तस्वीरे देखना-दिखाना ही ईस्लाम में कुफ्र है इन काफीरो की नासा जानबुझकर अल्लाह की तौहीन करने के लिये यहा-वहा तस्वीरे खिचते फिरती है? हम इनपर एतबार नहीं करते है। वैसे भी हम तो गये नहीं थे तस्वीर उतारने और अगर तस्वीर में एलियन हरा दिखाई दे रहा है तो यह हमारी फतह का सबूत है इससे भगवाई क्यो जल-भुन रहे है। इन काफीरो को तो.....

मामला बिघडते देख शांति समिति का कार्यकर्त्ता बीच-बचाव में कुद पडा, मामले को शांत करने के लिये उसने फरमाया कि सभी धर्म ईश्वर के अस्तित्व को मानते है अब अगर उसकी करामात से धरती पर जीवन हो सकता है तो वो जीवन को अन्य ग्रहो-चंद्रमाओ-सितारों कहीं पर भी बनवाने की ताकत रखता है। इस तर्क से सभी धर्मों के अनुयायी लाजवाब हो गये और मामला यही रफा-दफा हो गया।

मौका ताड हमारे दक्षिणपंथी पूंजीवाद के प्रवक्ता बोल पडे कि छोडीये जी इस झगडे को किस जमाने में जी रहे आप लोग? जमाना मंगल पर पहुंच चुका है और अगर मेंरे विश्वस्त सूत्रो की माने तो ये तस्वीर कुछ भी नहीं है हमारे अमेंरीकी आकाओ की तो शायद एलियन्स से कुछ गोपनीय डील भी हो चुकी है। अब अगर सुप्रीम कोर्ट ने भी क्लीन चिट दे ही दी है तो सभी को मिलकर एटमी डील लागू करवाने के लिये एकजुट हो जाना चाहिये। भाड में जाये इन लाल झंडे वालो का विरोध, अभी भी कुछ नहीं बिघडा है अमेंरीका के पिछे जाने में ही अक्लमंदी है समझे। समाजवाद-वमाजवाद भी बाबा-आदम के जमाने की बात है, इतिहास का अंत तो सोवियत संघ के साथ ही हो गया था पर मार्क्सवाद फिर भी यहा-वहा जिंदा रहा और हाल के दिनो में चावेज-मारेलस के उत्थान से लगने लगा की मार्क्स का भूत फिर लौट आया है लेकिन अब नासा के नये चित्रो ने बोलीवरीयो को तो छोडीये मार्क्स-एगेल्स के ऎतिहासिक भौतिकवाद और द्वंदवाद तक को इतिहास के पन्नो में दफन करवा दिया है। उधर डारवीन का विकासवाद भी शहीद हुआ समझो, अब तो नया युग आ गया है सभ्यताओ के अंत से भी आगे का युग याने पूंजीवाद के अमरत्व का युग।

चौपाल पर सन्नाटा छा गया कोई कुछ समझ नही पा रहा था कि क्या बोले? आखिर पूंजीवाद के प्रवक्ता की बात काटने का साहस तो उन किसी में न था।

लेकिन तभी सन्नाटा तोडते हुवे मोहल्लेवालो के चाट बाजार अर्थात प्रोफेसर साहब बोल पडे कि एटमी करार मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नया नहीं कहा है यह तो सर्ववीदित है कि सरकार बगैर संसद की अनुमती के एटमी करार पर आगे बढने के लिये मुक्त है इसीलिये लाल झंडे वाले संविधान में संशोधन करने की मांग कर रहे थे ताकि दिघ्रकालीन इमपेक्ट वाली विदेश और रक्षा संबधी नाजुक संधियो पर संसद अर्थात जनता के नुमांईदो की मोहर लगवाया जाना अनिवार्य हो सके। रही बात समाजवाद कि तो समाजवाद की व्याख्या करना सुप्रीम कोर्ट के दायरे के बाहर हैं। उधर ज्योति बसु समाजवाद पर अपनी टिप्पणी में कुछ भी गलत नहीं कह रहें, हमारे समाजवादी बंधु व्यर्थ की बहस में पडकर इसे अपनी आस्था का प्रश्न बना रहें है। आजादी के साठ बरस बाद भी भारत सामंतवादी पुर्वाग्रहो से मुक्त नहीं हो पाया है, साम्यवाद तो छोडीये समाजवाद ही आज की परिस्थिती में दुर की कोडी है। हमारे देश में तो अभी सामंतवाद पर पूंजीवादी हमलो का दौर चल रहा है, भारत में सामंतवाद के झंडाबरदार हमारे संघी मित्रो का मेकडोनल्ड्स संस्कृति, वेलेन्टाईन डे, न्यू ईयर सेलिब्रेशन का विरोध मेंरे तर्क को पुष्ट करते है। कही कोई विसंगती नहीं है मार्क्सवाद आज भी उतना प्रासंगिक है जितना मार्क्स के जमाने में था। समाजवादीयो-फार लेफ्टीस्टो की तरह आत्महत्या करने के स्थान पर वामपंथी-जनतांत्रिक विकल्प को और विकास के अखिल भारतीय पूंजीवादी माडल के दायरे में एक हद तक सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए लाल झंडे द्वारा चलाया जा रहे संघर्ष ही आज की ऎतिहासिक जरूरत है। रहा मंगल पर एलियन का सवाल तो इसे नासा अथवा किसी भी खगोलविज्ञानी ने पुष्ट नहीं किया है। यह तो.....

एक कला के विद्यार्थी ने प्रोफेसर की बात बढाते हुवे कहा कि - हो सकता है नासा के यान ने जो तस्वीरे ली है वो संयोगवश मानव जैसे दिखती चट्टान की हो, अब नासा की अरबो-करोडो मील दुर ली तस्वीर से कैसे सिद्ध किया जा सकता है कि वह आकृति इंसान है एलियन है या चट्टान। नासा द्वारा ली गयी रामसेतु की तस्वीरे भी इसके मानवनिर्मित होने की पुष्टी कहा करती है? नासा के प्रवक्ता का भी यही कहना है। इतिहासकार तो राम के अस्तित्व पर .....

विद्यार्थी की इस बात पर शांत बैठे भगवाई इतने भडक उठे, कि उत्तेजनावश चार्वाक के “प्रत्यक्षमेव प्रमाणम्!” के वेदविरोधी तर्क के बाण तक प्रोफेसर और उनके चेले पर दागने लगे। इस हो-हल्ले ने धीरे-धीरे एक बार पुन: सांप्रदायिक रंग लिया, इस बार वाद-विवाद में सभी धर्मो के नुमाइंदे कुद पडे, शांति समिति का कार्यकर्ता भी इस दफा फेल रहा। इस जुतमफैक के माहौल में चौपाल छोड पुस्तकालय जाते हुवे प्रोफेसर साहब अपने कला के विद्यार्थी को बता रहे थे कि उनकी इंटरनेटिया खोजबीन के अनुसार ये एलियन वास्तव में “जलपरी के स्टेच्यू की तस्वीर” है जिसे फोटोशाप नाम के साफ्टवेयर की मदद से नासा के यान द्वारा ली तस्वीरो के साथ जोड दिया गया है। .....


कबीरा

4 टिप्‍पणियां:

प्रदीप मिश्र ने कहा…

परेश जोरदार आवाज है, इसे इसी तरह से धारदार बनाकर रखना होगा, नहीं ता मारे जाऐंगे।

Ek ziddi dhun ने कहा…

zaruree kaam kar rahe bhai..
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Ek ziddi dhun ने कहा…

परेश भाई, आपकी सलाह काम आई और मैं मनमोहन की कविता पोस्ट कर पाया, धन्यवाद

Udai Singh ने कहा…

शुक्रिया एक अनमोल ब्लाग देने के लिए यह मेरे लिए .....लाल सलाम