8 जुलाई को देश की जनता से श्री प्रणव मुखर्जी ने वादा किया कि संसद में बहुमत सिद्ध कर लेने के बाद ही सरकार सुरक्षा उपायों पर आधारित प्रारूप को आईएईए भेजेगी। वामपंथी दलो के समर्थन वापसी के बाद अल्पमत में आ चुकी केन्द्र की यूपीए सरकार को अंतरराष्ट्रीय महत्व व रक्षा सबंधी महत्वपूर्ण करार पर आगे बढने का कोई नैतिक आधार नहीं बचा है। ऐसी परिस्थिती में सरकार ने सुरक्षा उपायों पर आधारित प्रारूप को आईएईए में भेजकर देश की जनता के साथ भारी विश्वासघात किया है। सरकार के इस कदम से साफ हो जाता है कि उसकी नियत में खोट है, वह पिछले दरवाजे से 123 करार को लागु करने पर तुली है।
कल तक सरकार गोपनीयता की दुहाई देकर मसौदे को सार्वजनिक करने से इंकार कर रही थी, आज सरकार की इस गोपनीयता की धज्जिया उड चुकी है। इस मसौदे की कापी को आसानी से इंटरनेट पर प्राप्त किया जा सकता है। (मसौदे को डाउनलोड करने के लिये क्लिक करे।)
तीन जाने-माने शीर्षस्त नाभिकीय वैज्ञानिकों ने सरकार से आग्रह किया है कि आईएईए के साथ निगरानी समझौते में जल्दबाजी न की जाए और इस मसौदे पर देश में तथा कम से कम यूपीए-वामपंथ की कमेटी में तथा आईएईए के साथ शामिल न रहे विशेषज्ञों के ग्रुप के साथ विचार-विमर्श किया जाए। एटमी ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा. पी के आयंगार, एटमी ऊर्जा रेगुलेटरी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डा. ए गोपालकृष्णन तथा भाभा एटमी शोध केंद्र के पूर्व निदेशक डा. ए एन प्रसाद ने 24 जून को बकायदा एक विस्तृत वक्तव्य जारी कर अपनी चिंता व्यक्त की। लेकिन सरकार वैज्ञानिकों व वामपंथीयो की आपत्तियो को दरकिनार कर, जनता से वादाखिलाफी कर, देश के संविधान को ताक पर रख किसी भी तरह करार थोपने का प्रयास कर रही है।
6 टिप्पणियां:
आप भी ढपोरशंख वामपन्थीयो एवम भाजपा के बहकावे मे आ गये एक बार मसौदा पढ तो लिया होता, ये वही भाजपा है जो ईससे भी कम सहुलियत पर करार करने को तैयार हो गई थी और रही बात वामपन्थीयो की तो ईन्हे तो अमेरिका के नाम से चिढ है, लेकिन देशहित सर्वोपरि होता है कभी कभी हि ये मौका सभी को मिलता है और ईस बार मौका कांग्रेस के हाथ लगी है वो जाने तो नही देना चाहेगी....
धीरज चौरसिया
किस देश के हित में नहीं है यह करार? बांग्लादेश या चीनदेश या पाक-देश?
Bjp ko kahan etraj hai karar par, wo to sada se America ki pitthu hai. Aane wale bure dinon mein communists ko aur badee ladai ladnee hai.
परमाणु करार भारत के हित में है और इसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि वामपंथी इसका विरोध कर रहे हैं ....वामपंथी हर उस चीज का विरोध करते हैं जो भारत के हित में होती है....चीन के इशारे पर करार का विरोध करने वाले वामपंथियों ने 1962 के भारत चीन युद्ध में भी देश से गद्दारी करके चीन की तरफदारी की थी ....पहले कहा जाता था कि बारिश मास्को में होती होती है और वामपंथी छाता कलकत्ता में खोल लेते हैं..लेकिन अब ये कहना ज्यादा मौजूं होगा कि बादल बीजिंग में छाते हैं और ये लेफ्ट वाले अपने दड़बे में यहाँ भारत में घुस जाते हैं ....येचुरी दारू तो अमेरिका की पीयेगा और वही दारू पीकर प्रेस कांफ्रेन्स में अमरीका को ही गरियायेगा....उसका अमरीका विरोध तो समझ में आता है क्योंकि उसे अपने आका चीन को खुश करना है......लेकिन परेश जी आप क्यों वामपंथियों के प्रवक्ता बन बैठे हो....
परेश जी बहुत अच्छा लिखा है आपने ..मिरची लग जाती है उन्हें जब वामपंथ का भूत उनके सामने नजर आने लगता है ...और इस अनिल जी को क्या पता डील का एबीसी नही पता होगा लेकिन पिर उतर गये नंगइ पर ..अरे डील का विरोध वामपंथी नही कर रहे है डील से जुडे उन इंप्लीकेशन से उन्हें विरोध है जिससे आनेवाले दिनों में भारत अमरीका का जूनीयर स्ट्राटेजिक सहयोगी हो जाएगा ..और खैर अनिलजी सरीखे लोगों को समझाना और रेत में घास उपजाना बराबर है ।
Paresh bhai, alok bhai, murkhta bharee tippanni karne wale hi deshbhakti ka theka liye hue hain. itna kuchh bik chuka hai desh ka, par inhen afsos tak nahin..
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