जलेस की पत्रिका नया-पथ पढने के लिये क्लिक करे!

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

करार विज्ञान एवं तकनिकी आत्मनिर्भरता के खिलाफ, वैज्ञानिको ने संप्रग सरकार को लताड़ा

परमाणु करार पर वैज्ञानिको व तकनिकी विद्वानों के राय की अवहेलना करने के लिये भारतीय वैज्ञानिकों के फोरम फोसेट (FOSET: Forum of Scientists, Engineers and Technologists) ने संप्रग सरकार को लताड़ लगाई। फोरम के महासचिव श्री शुभेंदु मित्रा ने कहा कि - "करार से ऊर्जा समस्या का कोई समाधान नहीं निकलने वाला उलटे ऊर्जा ओर भी अधिक महंगी हो जायेगी साथ ही हम यूरेनियम प्रचुर देशो की दया का पात्र बन कर रह जायेगे।" मित्रा का कहना है कि - "आयातित यूरेनियम से उत्पन्न ऊर्जा की कीमत 5.5 रूपये प्रति यूनिट होंगी जबकि हमारे घरेलु आणविक कार्यक्रम से उत्पन्न ऊर्जा की कीमत 4 रूपये प्रति यूनिट है, इसके विपरीत थर्मल प्लांट से उत्पन्न ऊर्जा मात्र 2 रूपये प्रति यूनिट पड़ती है। "

ज्ञातव्य रहे कि पिछले दो-तीन वर्षो में ही यूरेनियम के दामों में भयावह वृद्धि हुवी है, इसपर यूरेनियम-कार्टेल यूरेनियम के दामो में आग झरती तेजी लाने पर तुले है। अगर एक बार ये महंगे न्यूक्लियर प्लांट देश में बिजली उत्पादन शुरू कर देंगे हम यूरेनियम-238 आईसोटोप के लिये यूरेनियम-कार्टेल पर आश्रित हो जायेंगे। इन तमाम जोखिमो के बाद भी बिजली उत्पादन मात्र 8 प्रतिशत बढ पाने की संभावना है।

फोरम ने संप्रग सरकार पर वैज्ञानिकों व तकनिकी विद्धानो की आपत्तियो को दरकिनार करने का आरोप लगाते हुवे कहा कि वैज्ञानिक समुदाय के राय की अवहेलना से साफ हो जाता है कि करार विज्ञान एवं तकनिकी आत्मनिर्भरता के खिलाफ है।

तीन जाने-माने शीर्षस्त नाभिकीय वैज्ञानिकों ने सरकार से आग्रह किया है कि आईएईए के साथ निगरानी समझौते में जल्दबाजी न की जाए और इस मसौदे पर देश में तथा कम से कम यूपीए-वामपंथ की कमेटी में तथा आईएईए के साथ शामिल न रहे विशेषज्ञों के ग्रुप के साथ विचार-विमर्श किया जाए। एटमी ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा. पी के आयंगार, एटमी ऊर्जा रेगुलेटरी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डा. ए गोपालकृष्णन तथा भाभा एटमी शोध केंद्र के पूर्व निदेशक डा. ए एन प्रसाद ने 24 जून को बकायदा एक विस्तृत वक्तव्य जारी कर अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं। लेकिन सरकार ने अब तक इन शीर्षस्त नाभिकीय वैज्ञानिकों की सुध नहीं ली है।

उधर करार का समर्थन कर रहें वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके है कि इस करार की भारी कीमत देश को चुकानी होंगी। परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रधान सलाहकार वी.पी. राजा ने वैसे तो परमाणु करार पर सीधे कोई टिप्पणी करने से इंकार किया लेकिन उन्होंने बताया, "साठ के दशक में जब देश भीषण अकाल से जूझ रहा था तो हमें (लाल) गेहूं विदेश से मंगवाना पड़ा था और इसके सिवाय हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। यदि (लाल) गेहूं का आयात नहीं होता तो भुखमरी का सामना करना पड़ता"। राजा ने कहा, "हमें विदेशी सहायता की कीमत किसी न किसी रूप में चुकानी पड़ती है। वह चाहे संयुक्त राष्ट्र संघ में वोट पक्ष में देने की बात हो या अन्य कोई अंतरराष्ट्रीय मामला"।

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रदीप कांत ने कहा…

Thanks to give these facts

Pradeep Kant

प्रदीप मिश्र ने कहा…

परेश भाई बहुत अच्छा है। थोड़ा और धारदार करो। यह काटने का समय है।