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शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

कामरेड सुरजीत को लाल सलाम


सीपीएम के वेटरन नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत नहीं रहे। वे पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थे, उन्होंने नोएडा के मैट्रो अस्पताल में 1335 बजे अपनी आखरी सास ली। ९० के दशक के बाद की उनकी प्रत्येक गतिविधीयों का लगभग मुझे स्मरण है। लेकिन मुझे उनके पूरे जीवनक्रम की एक एक इंच की जानकारी प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। २३ मार्च १९१६ को आपका जन्म पंजाब के जालंधर बंडाला ग्राम में हुआ था। सन १९६४ से ये पार्टी के पोलित व्यूरो के सदस्य रहें । अप्रैल २००८ की पार्टी कांग्रेस में गंभीर बिमारी के चलते पहली बार आपको पोलित व्यूरो में शामिल नही किया गया । हालांकि इन्हें पार्टी के विशेष आमंत्रित सदस्य के रुप में केंद्रीय कमेंटी में रखा गया। सन १९३० में आपने भारत के स्वंत्रता आंदोलन में भगत सिंह की प्रेरणा से 'नौजवान भारत सभा' में शामिल होकर राजनीतिक सफर की शुरुआत की। २३ मार्च १९३१ को शहीदे आजम को अंग्रेजों ने फासी की सजा दी, कामरेड भगतसिंह की पुण्यतिथी पर सुरजीत ने होशियारपुर न्यायालय के परिसर में तिरंगा फहराया इस कार्यवाही के चलते आपको दो बार पुलिस ने गोलियों का निशाना बनाया। कामरेड सुरजीत को गिरफ्तार कर जब न्यायालय के सामने पेश किया गया तो उन्होने अपना नाम लंदन तोड सिंह बताया (one who breaks london)। स्टालिन के अनुयायी कामरेड सुरजीत ने सन १९३६ में कम्युनिष्ट पार्टी को ज्वाइन किया। अगंरेजों के खिलाफ आपकी लडाई जारी रही। चिंगारी और दुखी दुनिया के प्रकाशन का जिम्मा अपने हाथों में लेकर अंग्रेजों से टकराव लेते रहे जिससे अंग्रेज सरकार ने इन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया । जब मुल्क आजाद हुआ तो आप सीपीआई के पंजाब इकाई के अविभाजित कम्युनिष्ट पार्टी के जेनरल सेकेरेट्री थे। मुल्क की आजादी के बाद आपकी लडाई गरीब मेहनतकश और किसानों के वाजिब हक के लिये जारी रही । सीपीएम के वरिष्ठ नेता एके गोपालन के साथ सुरजीत को केंद्र सरकार ने विशेष कानून बनाकर गिरफ्तार किया। सन १९५० से १९५९ तक किसानों से अवैध लेवी वसूलने के सवाल पर ऐतिहासिक आंदोलन की आपने अगुवाई की। बाद में आपको अखिल भारतीय किसान सभा का जनरल सेकेरेट्री बनाया गया । सन १९६४ में जब सीपीआइ टूटी तो सुरजीत ने अपने आपको सीपीएम के साथ रखा। उस समय जब सीपीएम के ९ पोलितब्यूरो के सदस्यों का चयन हुआ उनमें से एक सुरजीत भी थे। सन १९९२ में वे पार्टी के जेनरल सेकेरेट्री बनाये गये और सन २००५ तक इस पद पर रहकर पार्टी की सेवा करते रहे। सन १९९० की वीपी सिंह सरकार हो या १९९६ में देवेगौडा की सरकार सुरजीत ने तीसरे मोर्चे के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।


कामरेड सुरजीत अमर रहे!
कामरेड सुरजीत को लाल सलाम!

कुमार आलोक

1 टिप्पणी:

Ek ziddi dhun ने कहा…

akhiri dam talak sachet dhang se party ke kaam mein lage rahe..Varna to somnath kee tarh Gorbachyov bhi ban hi sakte the..Surjeet ko Lal Salam