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गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

नवगीतकार नईम का जाना दुखी कर गया

नवगीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर , गज़लकार एवं काष्ठशिल्पी नईम लंबे समय से बीमार थे । वे इंदौर के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान आज दिनांक ९.०४.२००९ को इस दुनिया में नहीं रहे । वे देवास में रहे । देवास को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया । हिन्दी साहित्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा । वे आज हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनका लेखन हमेशा हमारे बीच उन्हें मौजूद रखेगा । उन्हें हम सभी साहित्यिक साथियों की और से विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धांजलि पेश है । उन्हें दिनांक १०.०४.२००९ शुक्रवार को सुबह ११ बजे अन्तिम बिदाई दी जायेगी ।
श्रद्धांजलि देते हुए उनका एक गीत प्रस्तुत है।

नवगीत


खाली हाथ लिए आया था
खाली ही दिन चला गया ।

वो क्या आया, हम ही बस यूँ ही आये थे
भीतर से आधे बाहर से किंतु सवाये थे
फंसा निरर्थकता के पाटों में
अपने हाथों दला गया ।

राजी नहीं हुआ भरने को अपना ही मन,
हुआ माटिया हाथ लगाये सोने सा धन
अपना भाड़ न फोड़ सका
औरों के हाथों तला गया ।

चले गए यूँ ही दिन खाली चले गए खाली,
उतर गई बालों की स्याही, चेहरे की लाली
बिना बुलाये आया था जो
बिना रुके ही भला गया ।

बहादुर पटेल

7 टिप्‍पणियां:

रज़िया "राज़" ने कहा…

उनकी आत्मा/रुह को अल्लाह जन्नत नसीब करे। बदा दु:ख हुआ उनके निधन के समाचार से।

बोधिसत्व ने कहा…

नईम बड़े नेक इंसान और ऊँचे दर्जे के शाइर थे....उनका न होना हिंदी को गरीब कर जाएगा

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

जानकर बड़ा दुःख हुआ उन्हें श्रध्धांजलि अर्पित करता हूँ .

ALOK PURANIK ने कहा…

नईमजी का जाना हिंदी रचनात्मकता की बहुत बड़ी क्षति है।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

मेरी ओर से भी श्रद्धांजली.

Himanshu Pandey ने कहा…

नईम के नवगीतों का अपना एक अलग ही अंदाज था । उनका चला जाना हिन्दी की बहुत बड़ी क्षति है है । मेरी श्रद्धांजलि ।

संगीता पुरी ने कहा…

उन्‍हें मेरी भी श्रद्धांजलि !!