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मंगलवार, 4 अगस्त 2009

वीरेन्द्र जैन की व्यंग्यजल -हमारा बहुमत है

हमारा बहुमत है

हम जो चाहे करें, हमारा बहुमत है
देश समूचा चरें, हमारा बहुमत है
वोट बटारें नैतिकता पर, फिर उसकी
मिल कर चटनी करें, हमारा बहुमत है
आलू प्याज सरीखे मत भी बिकते हैं
देकर ऊंची दरें, हमारा बहुमत है
मँहगाई से, दंगों से, हुड़दंगों से
लोग जियें या मरें, हमारा बहुमत है
पतित पावनी संख्याओं की गंगा से
सारे पापी तरें, हमारा बहुमत है
ईमानों की पोषाकें जो पहिने हैं
मारे मारे फिरें, हमारा बहुमत है
ऐसे हो या वैसे हो या जैसे हो
सब बहुमत से डरें, हमारा बहुमत है

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