शुक्रवार, 17 जून 2011
भारतीय जनकवि का प्रणाम
यह वर्ष जनवादी-प्रगतिशील आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षरों का जन्मशताब्दी वर्ष है, साथ ही विश्व अपने महानतम साहित्यकार गोर्की मखीम का ७५ वा स्मृति दिवस भी बना रहा है। भारतीय जनकवि नागार्जुन ने गोर्की के सौंवी वर्षगाठ के अवसर पर कविता लिखकर श्रद्घांजलि अर्पित की थी।
गोर्की मखीम!
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
घुल चुकी है तुम्हारी आशीष
एशियाई माहौल में
दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम ।
अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर
करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।
गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!
दर-असल 'सर्वहारा-गल्प' का
तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश
निकला था वह आदि-काव्य
तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से
जुझारू श्रमिकों के अभियान का...
देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल
अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर
विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण ।
'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण ।
गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!
नागार्जुन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
मेरा भी प्रणाम
एक टिप्पणी भेजें