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बुधवार, 19 मार्च 2008

मार्क्सवादी विचारक, लेखक, संस्कृतिकर्मी, ट्रेड़ यूनियनिस्ट, समर्पित सामाजिक - राजनीतिक कार्यकर्त्ता कॉमरेड बालाजी टोकेकर को अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के चलते 18 माह मीसाबंदी में काटने पड़े। आप इंश्योरेंस एम्प्लाइज यूनियन इन्दौर व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), इन्दौर के संस्थापक सदस्य रहे। आपने जिला सचिव के रूप पार्टी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जनवादी लेखक संघ इन्दौर के भी आप सदस्य रहे व लेखको व बुद्धिजीवियो के अधिकारों की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। सर्वहारा के मसीहा कॉमरेड बालाजी टोकेकर को 70 वी जयंती के अवसर पर जनवादी लेखक संघ, इन्दौर इकाई श्रद्धासुमन अर्पित करती है।


बालाजी टोकेकर बाहर से सख्त अंदर से कोमल

19 मार्च, 1938 को मध्यप्रदेश के देवास जिले के सुकुर्डी गांव में सामान्य परिवार में जन्में कॉमरेड टोकेकर ने प्रथम श्रेणी में इंटरमिडिएट परीक्षा पास की. प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों के चलते इस प्रतिभावान विद्यार्थी को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश से वंचित रहना पडा. उन्होंने अपनी स्नातक एवं स्नातंकोत्तर की उपाधि अप्रैल, 1958 में भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी करने के बाद प्राप्त की. अपने सेवाकाल के आरंभिक दौर में वे बीमा कर्मचारी आंदोलन से जुड गए थे. जीवन पर्यन्त वे अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभाते रहे. 1962 से 1972 तक साथी बालाजी टोकेकर अविभाजित इन्दौर डिवीजन इंश्योरेंस एम्प्लाइज एसोसिएशन के महामंत्री एवं अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे. इंश्योरेंस एम्प्लाइज यूनियन इन्दौर के 1973 में स्थापना सम्मेलन से लेकर जीवन पर्यन्त बालाजी इन्दौर इकाई के अध्यक्ष एवं ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्प्लाइज एसोसिएशन की कार्यकारिणी के सदस्य रहे.
उनकी लेखन क्षमता असीम थीं. वे मार्क्सवादी विचारक व चिंतक के साथ ही एक सफल रंगकर्मी थे. श्रद्धेय बाबा डिके की प्रसिद्ध संस्था नाट्य भारती, इन्दौर के सदस्य के रूप में उन्होंने कई नाटकों में भाग लिया. वे छोटी-छोटी बातों का बहुत ख्याल रखते थे. जीवन बीमा निगम विकास अधिकारियों की भर्ती हेतु ली जाने वाली परीक्षा का कार्य वे देखते थे. किसी त्रुटि या तथ्य की अपूर्णता के कारण उन्होंने किसी भी संबंधित प्रत्याशी का आवेदन निरस्त नहीं किया, बल्कि वे संबंधित प्रत्याशी को डाक से सूचित कर देते थे कि संबंधित त्रुटी का निराकरण परीक्षा प्रारंभ होने के पूर्व कर दें. अनुशासनप्रियता व कार्यो को निश्चित समयावधि में पूर्ण करना उन्हें पसंद था. यद्यपि साथी बालाजी टोकेकर जीवन पर्यन्त अविवाहित रहे, लेकिन उनके दो भाई एवं दो बहनो का परिवार है. उपर से कठोर दिखने वाले साथी बालाजी बहुत ही कोमल ह्दय के व्यक्ति थे. आम मेहनतकश व जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करने के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे. यह जानते हुए कि श्रमिक अपने बच्चों की शिक्षा का अधिक खर्च वहन नहीं कर सकते हैं, यदि उन्हें पता लगता कि कोई ऐसा विद्यार्थी कहीं पैसे देकर ट्यूशन ले रहा है तो वे स्वयं समय निकालकर उसे नि:शुल्क पढाते थे.
प्राध्यापक बालकृष्ण निलोसे स्मृति स्वरूप कहते हैं कि भारत ज्ञान-विज्ञान समिति एवं म.प्र. विज्ञान सभा के कार्यक्रमों में अध्यक्ष के रूप में मुझे इन्दौर क्षेत्र में कार्य करने का विगत वर्षों में संयोग आया. साक्षरता एवं विज्ञान में प्रचार-प्रसार व आम आदमी की सक्षम भूमिका के कार्य में मुझे भाई बालाजी टोकेकर का वांछनिय सहयोग मिला. वे सरल, सौम्य, सेवाभावी व समर्पित कार्यकर्ता थे. बिना किसी हिचकिचाहट के हम उनके सहयोग को प्राप्त कर लेते थे. संस्था के सदस्यों को उनके प्रति सम्मान व आदर था. मेरे भी वे व्यक्तिगत मित्र थे, जिनमें नि:संकोच विभिन्न विषयों पर चर्चा होती रहती थी. परिवार व समाज की निश्छल रूप में जो उन्होंने सेवा की है, वह भुलाई नहीं जा सकती.
बालाजी के बालमित्र तथा रंगकर्मी श्री अरूण डिके सगर्व बताते है, कि बालाजी से मेरी मित्रता को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं. अब वे इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके साथ स्कूल में और बाद में नाट्य भारती में बिताए गए सुखद क्षणों की स्मृतियां अभी भी शेष हैं. हम दोनों हिन्दी माध्यमिक विद्यालय और अंत में नूतन विद्यालय में छठी से दसवीं तक साथ-साथ रहे. उन दिनों मैं रेशमवाला लेन तथा बालाजी गौतमपुरा में रहते थे. ये दोनो मोहल्ले नंदलालपुरा का ही हिस्सा होने के कारण हम लोग दिन में कई बार मिलते. चंद्रभागा नदी के पास स्थित दो नंबर स्कूल पर हम लोग मिलते थे और नंदलालपुरा में लाड़ साहब के बाड़े में, जहां मेरे बड़े भाई नाटककार बाबा ड़िके और उनके मित्रों द्वारा स्थापित महत्वकांक्षी बालोद्धार मंडल का कमरा था, वहां गणेशोत्सव के नाटकों की रिहर्सल करते रहते थे. बालाजी अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे और पढ़ाई में हम सबसे अव्वल रहते थे. हमारे वे दिन आर्थिक तंगहाली के थे. वे स्वाभीमानी इस कदर थे कि किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते थे. बालाजी के परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी और इसी कारण से उन्हें मेट्रिक व इंटर में प्रथम श्रेणी पाकर भी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका, अन्यथा वे एक अत्यंत प्रतिभाशाली इंजीनियर बनकर वहां से निकलते. हमारे समाज में ऐसे कितने ही बालाजी केवल धन के अभाव में अपनी पढ़ाई को तिलांजलि देते होंगे, यह बात मुझे सदैव चुभती रहती है. बेशक निर्धन छात्रवृत्तियां और मेधावी छात्रों को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाले कई न्यास हमारे यहां मौजूद हैं. इनके बावजूद कई होनहार छात्रों तक वह मदद नहीं पहुंच पाती है.
संकलन: सुरेश मोदी
इन्दौर बुधवार 13 नवम्बर, 2002

3 टिप्‍पणियां:

Ek ziddi dhun ने कहा…

उन्हें इंजीनियर बनना कहाँ था? उन्हें यही बनना था या कहें ख़ुद को खपाकर कुछ बचाना-बनाना था. आपने उनका परिचय कराया, शुक्रिया. वाकई क्या लोग थे, इस तरह लगा देते थे ख़ुद को फेसलेस ढंग से..सव्यसाची याद आ रहे हैं...जो लोग फल ही फल चाहते हैं आजकल, उन्हें यकीन भी नहीं होता, ऐसे भी थे लोग...
ज़मीं खा गयी, आसमां कैसे-कैसे...

प्रदीप मिश्र ने कहा…

हमारे आदर्श के बारे में पढ़कर एक बार फिर हम मजबूत हुए। बहुत अच्छा है।

Arun Aditya ने कहा…

बालाजी को मैंने अपने इंदौर के दिनों में नजदीक से देखा है। उनकी कर्मठता और प्रतिबद्धता को लाल सलाम।