व्यंग्यजल
इसमें केवल बीबी बच्चे आयेंगे
'नैनो' में माँ-बाप समा ना पायेंगे
दादाजी का रिश्ता, कोई रिश्ता है
वे पापा के पापाजी कहलायेंगे
माल विदेशी बिके स्वदेशी झख मारे
अंधे जब पीसेंगे कुत्ते खायेंगे
इतना बोझ न डालो कंधे झुक जायें
अपनी डोली फिर किससे उठवायेंगे
हमको केवल स्वागत गान नहीं आते
होली पर गाली भी हमीं सुनायेंगे
रविवार, 19 जुलाई 2009
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1 टिप्पणी:
अबकी होली के गालीयों की कापीराईट की भी तैयारी है।
गर एसा हो गया तो गाली भी कैसे सुनायेंगे।
वीरेन्द्र जी इस साआहित्य व्यंग्यजल के लिये साधुवाद!
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