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गुरुवार, 23 जुलाई 2009

पार्टनर आपकी पॉलटिक्स क्या है?

उदय प्रकाश जैसे साहित्यवरों को दक्षिणपंथी घुन चाट रही है। पुरस्कारों के लालीपाप में फसकर हमारे ये साथी गदगद हो रहे हैं, और हमारी समझाइश पर आखे तराश रहे हैं।

प्रगतिशील दिखना व होना दोनो अलग बाते है, प्रगतिशील दिखना आज फैशन है। शायद अहं या तृष्णा (चाहे पुरस्कारों की हो या किसी अन्य चीज की) के कारण, जब भी इन प्रगतिशीलो के प्रगतिशील होने की कीमत लगती है तो ये अपने ढोंग का आवरण छोड सब कुछ बेचने पर आमादा हो जाते है।

मुक्तिबोध द्वारा पहले परिचय में पुछे जाने वाले सवाल ''पार्टनर आपकी पॉलटिक्स क्या है?'' का जवाब देने का प्रयास उदय प्रकाश जी ताउम्र अपनी लेखनी से करते रहे है, परंतु योगी आदित्यनाथ के हुजुर में आपको हाजरी भरते देख लगता है कि रचनाकर्म में आपकी पॉलटिक्स कुछ है और व्यावहारिक-व्यक्तिगत जीवन में कुछ ओर।

पिछले दिनों इन्दौर में हबीब तनवीर व कामरेड होमी दाजी की याद में रखे एक कार्यक्रम में देश के एक (तथाकथित प्रगतिशील) वैज्ञानिक ने शिरकत की। कभी होमी दाजी तो कभी हबीब तनवीर के बहाने मंच पर से वे मार्क्सवाद प्रगतिवाद पर अपने अनुभव हाक रहे थे। परंतु अनौपचारिक बातचीत के दौरान महाशय की असलियत पता चली, जब उन्होंने मार्क्सवाद को खारीज करने से ही बातचित शुरू की। भाई मीठा मीठा गप कडवा कडवा थू, ये है इनकी पॉलटिक्स।

उदय प्रकाश जी एक व्यक्ति नहीं है वरन एक प्रवृत्ति है जो जनवादी-प्रगतिशील आंदोलन में जहर की तरह घुल रही है। जनवादी-प्रगतिशील आंदोलन में घुसी इस प्रवृत्ति की पहचान कर इसे अलग-थलग किया जाना नितांत आवश्यक है। ये वो वामपंथी वागाडंबरी बुद्धिजीवी तत्व है जो वाम सरकारों के खिलाफ सबसे ज्यादा जहर उगलता नजर आता है। ये वर्ग कागज स्याह कर स्वयं के सच्चे वामपंथी होने के कसीदे रचता है, परंतु भाषा के ये मजदूर सडक पर मजदूर के साथ कभी दिखाई नहीं पडते।

इस प्रवृत्ति के खिलाफ देश के प्रमुख साहित्यिक हस्ताक्षरों ने अपना विरोध-पत्र जारी किया है, जो इस तरह है। ('कबाड़खाना' से साभार)

विरोध-पत्र
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हमें इस घटना से गहरा आघात पहुँचा है कि कुछ दिन पहले हिन्दी के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय साहित्यकार उदय प्रकाश ने गोरखपुर में पहला " कुँवर नरेंद्र प्रताप सिंह स्मृति सम्मान " योगी आदित्यनाथ जैसे कट्टर हिन्दुत्ववादी , सामन्ती और साम्प्रदायिक सांसद के हाथों से ग्रहण किया है , जो ' उत्तर प्रदेश को गुजरात बना देना है ' जैसे फ़ासीवादी बयानों के लिए कुख्यात रहे हैं . हम अपने लेखकों से एक ज़िम्मेदार नैतिक आचरण की अपेक्षा रखते हैं और इस घटना के प्रति सख्त-से-सख्त शब्दों में अपनी नाखुशी और विरोध दर्ज करते हैं .

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ज्ञानरंजन ,
विद्यासागर नौटियाल ,
विष्णु खरे ,
मैनेजर पाण्डेय ,
लीलाधर जगूड़ी,
भगवत रावत ,
राजेन्द्र कुमार ,
राजेन्द्र राव ,
चंचल चौहान ,
आनंदस्वरूप वर्मा
पंकज बिष्ट ,
इब्बार रब्बी ,
नीलाभ ,
वीरेन डंगवाल ,
आलोक धन्वा,
मंगलेश डबराल ,
त्रिनेत्र जोशी,
मनीषा पाण्डेय,
रविभूषण ,
प्रदीप सक्सेना ,
अजय सिंह ,
जवरीमल्ल पारख ,
वाचस्पति ,
अतुल शर्मा,
विजय राय ,
मनमोहन
असद ज़ैदी ,
मदन कश्यप ,
रवीन्द्र त्रिपाठी ,
नवीन जोशी,
अजेय कुमार ,
वीरेन्द्र यादव ,
कुमार अम्बुज
देवीप्रसाद मिश्र ,
कात्यायनी ,
निर्मला गर्ग ,
अनीता वर्मा ,
योगेन्द्र आहूजा ,
शुभा,
बोधिसत्व,
संजय खाती ,
नवीन कुमार नैथानी ,
कृष्णबिहारी ,
विनोद श्रीवास्तव ,
प्रणय कृष्ण ,
राजेश सकलानी ,
इरफ़ान,
मुनीश शर्मा,
विजय गौड़ ,
आशुतोष कुमार ,
मनोज सिंह
सुन्दर चन्द ठाकुर ,
नीलेश रघुवंशी ,
आर. चेतनक्रान्ति ,
पंकज चतुर्वेदी ,
शिरीष कुमार मौर्य ,
रामाज्ञा शशिधर ,
प्रियम अंकित ,
अंशुल त्रिपाठी ,
प्रेमशंकर ,
मृत्युंजय ,
धीरेश सैनी ,
अनुराग वत्स ,
व्योमेश शुक्ल .
रविकांत

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