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गुरुवार, 5 नवंबर 2009

मालवा के दुलारे को नमन :

क्या वे सचिन के 17000 रन पूरे करने के लिये प्रतीक्षा कर रहे थे?
वीरेन्द्र जैन्
शायद उन्हें सचिन के 17000 रन पूरे होने की प्रतीक्षा थी। अपने पिछले जन्मदिन पर लिखे कागद कारे में उन्होंने आगामी मृत्यु को सूंघ लेने के साफ साफ संकेत दे दिये थे।
वे ऐसे इकलौते वरिष्ट सम्पादक विचारक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्हें समाज राजनीति अर्थ व्यवस्था आदि की बराबरी पर क्रिकेट को रखने में कोई परेशानी नहीं होती थी जबकि हम जैसे कई लोग जब किसी विशेष महत्व के विषय पर उनके धारदार लेख की प्रतीक्षा में जनसत्ता का इंतज़ार कर रहे होते, तब प्रथम पृष्ठ पर उतनी ही धार के साथ क्रिकेट पर उनका लेख देख कर कोफ्त होती थी। बाद में पता चला कि वे एक अखकार के सम्पादक के रूप में जन रुचियों के प्रति कितने सम्वेदन शील थे।
एक बार जब वे भारत भवन में आये थे और बातचीत में उनसे उनके सती प्रथा वाले सम्पादकीय के बारे में जिज्ञासा व्यक्त की तो उन्होंने कहा था कि एक सम्पादक का काम भी एक बेट्स मैन की तरह होता है जिसको एक दो सेकिंड में फैसला ले लेना होता है कि इस आती हुयी बाल को खेलना है छोड़ना है, हिट करना है या डिफेंसिव रहना है! और ये एक दो सेकिंड बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस त्वरित फैसले में की गयी गलती कई बार खिलाड़ी को भारी भी पड़ जाती है । सम्पादक के लिये भी ऐसे ही क्षण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

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