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गुरुवार, 5 अगस्त 2010

शोकगीत

''इतिहास खुद को दोहराता है, पहली बार त्रासदी और दूसरी बार प्रहसन के रूप में'' कार्ल मार्क्स का यह महान सूत्रवाक्य बरबस ही याद आ जाता है। ७ जून २०१० को भोपाल त्रासदी के २५ वर्षो बाद यूनियन कार्बाईड के ७ हिन्दोस्तानी अधिकारीयों को ''आपराधिक लापरवाही'' के कारण हुवी मौतो का दोषी ठहराते हुवे भारतीय कानूनानुसार अधिकतम २ वर्षो के कारावास की सजा सुनायी गयी एवं तुरंत जमानत पर रिहा कर पिडीतों के जख्मों पर नमक छिड़का गया। २५ जून २०१० को मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इन्दौर से महज २२ किमी दूर स्थित औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में हैदराबाद की अपशिष्ट प्रबंधन कंपनी राम्को एनवायरों इंजिनियर के भस्मक में यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा जलाने के परीक्षण अभियान के समय ७ मजदूर बीमार पड़ गए। ज्ञातव्य रहे कि जहा यूनियन कार्बाईड का ३४६ टन रेडियोएक्टिव अपशिष्ट जलाया जा रहा है वह घनी आबादी वाले धार-महू-इन्दौर से घिरा हुआ है इसपर प्लांट के पास से निकल रहे दो नाले इन्दौर की जीवनरेखा यशवंत सागर में मिलते है। मामले पर आसपास के ग्रामिणों व शहरी लोगो में व्याप्त आक्रोश के बाद कैंद्र की कांग्रेस व राज्य की भाजपा नीत सरकारें गेंद एक-दूसरे के पाले में डाल कामनवेल्थ खेलो का अभ्यास करती नजर आ रही है, उधर यूका का कचरा निपटाने की तैयारीया पर्दे के पिछे शुरू है। भोपाल कांड की त्रासदी के बाद क्या अब भारत में प्रहसन रचने की तैयारी की जा रही है? अमेंरीका के साथ परमाणु करार करने के लिये सप्रग-१ ने साम-दाम-दंड-भेद के इस्तेमाल का क्लासिकल उदाहरण पेश किया एवं 'परमाणु दायित्व विधेयक' के मामले में भी वो कोई कसर छोडने के लिये तैयार नहीं दिख रही है। 'परमाणु दायित्व विधेयक' भोपाल जैसी किसी भी घटना का संपुर्ण दायित्व सस्ते में भारत की जनता पर ड़ालने की साम्राज्यवादी तिकड़मबाजी को अमलीजामा पहनाने की रस्म अदायगी मात्र है।

हिरोशिमा-नागासाकी की त्रासदी का रचियेता रोज नये-नये प्रहसन ईजाद करने में लगा हुआ है, जिसकी निर्विवादित कर्मस्थली बन रही है तीसरी दुनिया। तमाम नये ईजादो के परिक्षण के लिये विएतनाम, युगोस्लाविया, अफगानिस्तान, ईराक, ईरान, फिलीस्तीन या हिन्दोस्ता जैसे देशो से अच्छी प्रयोगशाला दुनिया में ओर कहा मिलेगी? खैर नित नये बनते हिरोशिमा-नागासाकी की भीड़ में हम स्वयं बैल को आमंत्रित कर रहे है जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दुसरे को क्या दोष देना।

हिरोशिमा-नागासाकी की ६५ वी बरसी पर साम्राज्यवाद-जनित तमाम मानवीय त्रासदी के हताहतों से 'शोकगीत' के अलावा ओर क्या अपेक्षा की जा सकती है।


भोपालः शोकगीत १९८४ - मेरे शहर का नाम / राजेश जोशी

मैं नहीं चाहता
कि जब भी लूँ
मैं अपने शहर का नाम
दूसरा पूछे
क्या हुआ था उस रात?
कैसे हुआ वह सब कुछ?

मुझे आज तक कोई नहीं मिला
जिसने कहा हो
मैं हिरोशिमा से आया हूँ
मैं आया हूँ नागासाकी से

क्या मुँह लेकर जाऊँ मैं
दूसरों के सामने?
किस मुँह से कहूँ
कि मैं आया हूँ
किस शहर से !

1 टिप्पणी:

प्रदीप कांत ने कहा…

क्या मुँह लेकर जाऊँ मैं
दूसरों के सामने?
किस मुँह से कहूँ
कि मैं आया हूँ
किस शहर से !

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