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कामगार कवी के नाम से प्रसिद्घ वरिष्ठ मराठी जनकवी नारायण सुर्वे (८३) का आज सुबह लंबी बिमारी के बाद ठाणे में देहांत हो गया। १५ ऑक्टोबर १९२६ को मुंबई के गिरणगाव में जन्में अनाथ कामरेड़ सुर्वे का बचपन बड़ी मुफलीसी और गरीबी में फुटपाथ पर सोकर छोटे-मोटे काम करते हुवे बीता, इसी बीच आपने कविता लिखना शुरू किया। १९६६ में कामगारों के जीवन पर आधारीत आपका प्रथाम काव्य संग्रह 'माझे विद्यापीठ' प्रकाशित हुआ जिसे बड़ी प्रसिद्घि मिली। इसके अलावा आपके द्घारा लिखित जाहीरनामा (१९७८), ऐसा गा मी ब्रम्ह, सनद, मानुष कलावंत, आणि समाज, सर्व सुर्वे (वसंत शिरवाडकर संपादीत) काव्य संग्रह भी प्रसिद्घ हुवे। अध्यापन कार्य के साथ-साथ आप मुंबई के श्रमिक आंदोलन के साथ निरंतर जुड़े रहे व आपको श्रमिको के हक के लिये लंबे संघर्ष करने वाले जुझारू साथी के रूप में जाना जाता है।
कामरेड सुर्वे को १९९८ में पद्मश्री व १९९९ में कबीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९९५ में परभणी में संपन्न मराठी साहित्य सम्मेलन के आप अघ्यक्ष थे।
कामगार नेता व कामगार कवी कामरेड़ नारायण सुर्वे को जनवादी लेखक संघ की श्रंद्घाजली।
कामरेड़ नारायण सुर्वे अमर रहे।
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meree bhi shradhanjali
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