''साझी विरासत और कबीर की कविता'' विषय पर परिसंवाद
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मोहन लाल सुखाड़िया विश्व विद्यालय के नेहरु अध्ययन केंद्र द्वारा ''साझी विरासत और कबीर की कविता'' विषय पर आयोजित इस परिसंवाद में सिरोही महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. माधव हाड़ा ने कहा कि वर्णाश्रम जैसी हमारी गढ़ी गई कई पूर्व धारणाओं को यह पुस्तक झटका देती है और औपनिवेशिक ज्ञान कांड से विरासत में मिली समझ कि विकलांगता को बहुधा दुरुस्त करती है. डॉ. हाड़ा ने प्रो. अग्रवाल द्वारा दिए देशज आधुनिकता के सिद्धांत को आलोचना व समाज विज्ञान के लिए प्रस्थान बिंदु बताया. गुरु गोबिंद सिंह विश्व विद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रो. आशुतोष मोहन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यह ऐसी पुस्तक नहीं है जिसे मौज या सपाटे में पढ़ लिया जाये, अपितु अपने विस्तार और गहराई के कारण यह अंतर अनुशासनिक अध्ययन का आदर्श उदाहरण बन जाती है. दर्शन शास्त्र की प्राध्यापक डॉ. सुधा चौधरी न प्रो. अग्रवाल द्वारा दी गई अवधारणा ''धर्मेतर अध्यात्म'' के सम्बन्ध में अपने शंकाओं और जिज्ञासाओं को रखा. बी.एन.कालेज के डॉ. हिमांशु पंड्या ने कहा की अपनी स्थापनाओं के लिए पुस्तक 'पोलिटिकली इनकरेक्ट'' होने का जोखिम उठाने से परहेज नहीं करती. संयोजन कर रहे दिल्ली विश्व विद्यालय के हिंदी सहायक आचार्य डॉ. पल्लव ने कहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने आलोचना को सभ्यता समीक्षा कहा था, सभ्यता समीक्षा के स्तर को प्राप्त करने वाली दुर्लभ आलोचना पुस्तकों में से है जो कवि रूप में कबीर को सुस्थापित करती है.
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नेहरु अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. संजय लोढ़ा ने अंत में सभी का आभार माना. आयोजन में विश्वविद्यालय कुल सचिव मोहनलाल शर्मा, कोटा खुला विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. अरुण चतुर्वेदी, कवि कैलाश जोशी,आकाशवाणी के केंद्र निदेशक डॉ. इन्द्रप्रकाश श्रीमाली,मीरा कन्या महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मंजू चतुर्वेदी, श्रमजीवी महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मलय पानेरी, आस्था के विष्णु जोशी सहित आसपास के शहरों से आये लेखक-कवियों की उपस्थिति भी रही अंकुर प्रकाशन द्वरा लगायी गई पुस्तक प्रदर्शनी का संभागियों ने पूरा लाभ लिया..
(डॉ. संजय लोढ़ा)
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