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रविवार, 6 जनवरी 2008

सांप्रदायिकता, साम्राज्यवाद व आतंकवाद के खिलाफ संघर्षरत समस्त क्रांतिकारी पाकिस्तानी आवाम को समर्पित

(13 फरवरी 1911 - 20 नवम्बर 1984)


आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो


आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो
चश्मे-नम जाने शोरीदा काफी नहीं
तोहमते इश्क पोशीदा काफी नहीं
आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

दस्ते आफ्शां चलो मस्तो रक्सां चलो
खाक-बर-सर चलो खूं-ब-दांमां चलो
राह तकता है शहरे जानां चलो
आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

हाकिमे शहर भी मजमा-ऐ-आम भी
तीरे इल्जाम भी संगे दुशनाम भी
सुबहे नाशाद भी रोज़े नाकाम भी
आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

इन का दमसाज़ आपने सिवा कौन है
शहरे जानां में आब बासफा कौन है
दस्ते कातिल के शायां रहा कौन है

रक्से दिल बांध लो दिल फिगारा चलो
फिर हमीं कत्ल हों आओ यारा चलो

आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो
फैज़ अहमद फैज़


(रावलपिंडी षडयंत्र के नाम से मशहुर विफल तख्तापलट के एक नायक, लेनिन शांति पुरस्कार प्राप्त प्रथम एशियाई कवि शायर फैज़ अहमद फैज़ ने आजादी पसंद साथियो के संघर्ष के समर्थन में उपरोक्त नज्म 1959 में जनरल अयूब द्वारा लगाये मार्शल ला के दौरान गिरफ्तार कर पाव में बेड़िया डाल लाहौर की तंग गलियो, बाजारो से लाहौर किले के यातनागृह ले जाये जाने के बाद लिखी।)


बोल, कि थोड़ा वक्त बहुत है

बोल, कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल, ज़बां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
बोल, कि जाँ अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की दुकां में
तुन्द हैं शोले, सुर्ख हैं आहन
खुलने लगे कुफ्लों के दहाने
फैला हर इक ज़ंजीर का दामन

बोल, कि थोड़ा वक्त बहुत है
ज़िस्मों ज़ुबां की मौत से पहले
बोल, कि सच ज़िन्दा है अब तक
बोल, जो कुछ कहना है कह ले

फैज़ अहमद फैज़

2 टिप्‍पणियां:

प्रदीप मिश्र ने कहा…

बोल कि लब आजाद हैं तेरे, अरे फैज का हथौड़ा है तो मगज पर ही पड़ेगा। तुम इस तरह परचम उठाए रहो। सुबह होगी और हम भी गाऐंगे चिड़ियों की तरह। बहुत अच्छा चयन है। थोड़ा परदीप कान्त,रजनीरमण, सनत जी, अजीज, देवेन्द्र अऊर उन्नी जी को भी तो गरमाओ।

प्रदीप कांत ने कहा…

बोल, कि सच ज़िन्दा है अब तक
बोल, जो कुछ कहना है कह ले

जिसमे सच कहने की आदत और साथ ही ताकत, बाकी है वो तो सच ही कहेगा। ठीक वैसे ही जैसे एक फकीर बिन्दास कहता है -

हम सरेराह लिये बैठे हैं इक चिन्गारी
जिसका जी चाहे चराग़ों को जला ले जाऐ

- प्रदीप कान्त