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रविवार, 17 जनवरी 2010

shraddhaanjali ज्योति बसु बुझने वाली ज्योति नहीं थे

बुझने वाली ज्योति नहीं ज्योति बसु
वीरेन्द्र जैन
ज्योति बसु की देह से चेतना चले जाने को देहांत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन्होंने अपनी देह को भी मेडिकल कालेज को दान करने का निर्णय कर दिया था। उनके जीवन के बाद भी उनकी देह इस देश में चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन करने वाले नौजवानों के काम आयेगी जिससे वे हज़ारों ज़िंदगियों को बचा कर जीवन ज्योतियाँ बनाये रहेंगे।
वे राजनेता थे किंतु ऐसी पार्टी के राजनेता थे जहाँ सामूहिक नेतृत्व होता है और व्यक्ति का योगदान भी समूह की आवाज़ की तरह सामने आता है। अपने ज्ञान की ज्योति से अपने साथियों की सहमति के साथ ज्योति बाबू ने जिस पार्टी का विकास किया था उसके सदस्यों ने समाजवादी समाज की स्थापना के लक्ष्य के साथ संसदीय लोकतंत्र के नियमों का पालन करते हुये पूरे देश में जिस उच्च स्तरीय नैतिकता की ज्योति जलायी वह न केवल देशवासियों को रोशनी दिखाती रहेगी अपितु हज़ारों राजनीतिज्ञों को आइना भी दिखाती रहेगी। वे भगत सिंह की उस परम्परा के वंशज थे जो मानते थे कि-
हम भी आराम से रह सकते थे अपने घर पर
हमको माँ बाप ने पाला था बड़े दुख सह कर
किंतु समाज में सकारात्मक बदलाव की जो ज्योति उनके अन्दर रोशन हुयी वो कभी बुझी नहीं। जहाँ एक छोटे से पद के लिये लोग अपने सारे सिद्धांत भूल जाते हैं वहीं ज्योति बसु की पार्टी ने देश के सर्वोच्च प्रधानमंत्री पद को दो बार ठुकराया। वे अपनी पार्टी के उन संस्थापक सदस्यों में से एक थे जिसके ई एम एस नम्बूदरीपाद, हरकिशन सिंह् सुरजीत समेत अधिकांश सदस्यों ने अपनी पूरी सम्पत्ति पार्टी के नाम कर दी थी और वह सम्पत्ति भी कोई साधारण सम्पत्ति नहीं थी। एक चौथाई शताब्दी से अधिक समय तक मुख्य मंत्री रहते हुये भी उन्होंने कभी सरकारी बंगले में जाने की ज़रूरत नहीं समझी। वे ऐसे मुख्य मंत्री थे जो अपने जिस मकान में रहते थे उसके दूसरे हिस्से में किरायेदार रहता था। उन्होंने जिस पार्टी का नेतृत्व किया उसे वे नैतिक मूल्य दिये कि उनके सदस्यों ने न कभी दल बदल किया न टिकिट पाने के लिये मारा मारी की। वे उस विधान सभा के द्वारा चुनी सरकार के मुखिया रहे जिसके सदस्यों ने लगातार 25 से अधिक वर्षों तक अपना कोई वेतन नहीं बढाया। उनकी पार्टी के प्रत्येक सांसद और विधायक द्वारा अपना पूरा वेतन पार्टी को दिया जाता रहा है और उनमें से व्होल टाइमरों को पार्टी से मिलने वाले वेतन से अपना गुज़ारा करना होता था। जो बेहद मामूली होता था।
ज्योति बाबू के पार्टी सद्स्य ना तो हवाला से जुड़े रहे, न संसद में सवाल उठाने के लिये पैसे लेने के मामले में, न सांसद निधि बेचने में, न कबूतरबाज़ी में, और न दल बदल के लिये पैसे लेने में । उनकी पार्टी के सदस्य यदि जनता से समर्थन लेकर सद्न में पहुँचते हैं तो वहाँ उपस्थित भी रहते हैं और कार्यवाही में भाग भी लेते हैं। उनकी पार्टी ने पूंजीपतियों से चन्दा नहीं लिया अपितु वह उनके सद्स्यों द्वारा दी गयी लेवी से सादगी और समर्पण के आधार पर चलती रही तथा देश की दूसरी पार्टियों और उनके नेताओं की तरह राजनीति को निजी सम्पत्ति बनाने के लिये प्रयोग नहीं किया। उनकी कैडर आधारित पार्टी ने कभी किसी दूसरे दल के सदस्यों को को आयात नहीं किया और न ही उनके दल के सदस्यों ने अपने स्वार्थ के लिये दल बदल किया। भले ही संख्या की दृष्टि में उनकी पार्टी देश में तीसरे नम्बर पर रही हो किंतु संसदीय बहस और विमर्शों में सदैव पहले नम्बर पर रही। आज जब हमारी संसद में तीन सौ से ज्यादा करोड़पति हैं तब उनकी पार्टी में भले पैसे वाले लोग न हों पर करोड़ों लोगों का साथ और विश्वास पाने वाले नेतृत्वकारी मौज़ूद हैं। उनकी पार्टी ने कभी अपने संख्यात्मक विस्तार के लिये नीतियों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। वे कभी अपने वर्ग की विरोधी पार्टी की सरकारों में सम्मलित नहीं हुये तथा गठबन्धन सरकारों को समर्थन देते हुये उन्होंने सदैव ही अपने सिद्धांतों और नीतियों के आधार पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सहमति बनाने की शर्त रखी व उसका उल्लंघन करने पर उन्होंने सरकार से समर्थन वापिस लेने में कोई देर नहीं की।
ज्योति बाबू की जनहितैषी नीतियों के कारण इतनी लोकप्रियता रही कि दुनिया में लोकतांत्रिक ढंग से लगातार चुनी हुयी सरकार बनाने और लगातार चलाने में उन्होंने विश्व रिकार्ड बनाया, और देश के दूसरे दलों के सत्ता व कुर्सी लोलुप नेताओं के विपरीत वे पद पर रहते हुये ही पार्टी से अनुमति लेकर स्वयं ही रिटायर हुये और अपने स्वास्थ की सीमा में पार्टी का काम करते रहे।
देह एक भौतिक वस्तु है और प्रत्येक भौतिक वस्तु की तरह उसके अवयव भी विश्रंखलित होते हैं किंतु जो लोग अपने कार्यों और आदर्शों से इतिहास में अपने पद चिन्ह छोड़ जाते हैं वे लंबे समय तक उपस्थित रहते हैं। ज्योति बसु भी उन्हीं लोगों में से एक थे, जो अपने पीछे समर्पित विवेकशील ईमानदार कार्यकर्ताओं की पूरी एक पार्टी छोड़ गये हैं।
सभी लोग मरने से मर नहीं जाते, कुछ ऐसे होते हैं जो हमारी स्मृतियों में ही नहीं अपितु हमारे संकल्पों को रौशन करते हुये सदैव साथ रहते हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

4 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

कामरेड़ ज्योति बसु को लाल सलाम

प्रदीप कांत ने कहा…

सही बात है.....

बेनामी ने कहा…

ब्लॉग जगत का घिनौना चेहरा अविनाश

भारतीय ब्लॉगिंग दुनिया के समस्त ब्लॉगरों से एक स्वतंत्र पत्रकार एवं नियमित ब्लॉग पाठक का विनम्र अपील-
संचार की नई विधा ब्लॉग अपनी बात कहने का सबसे प्रभावी माध्यम बन सकता है, परन्तु कुछ कुंठित ब्लॉगरों के कारण आज ब्लॉग व्यक्तिगत कुंठा निकालने का माध्यम बन कर रह गया है | अविनाश (मोहल्ला) एवं यशवंत (भड़ास 4 मीडिया) जैसे कुंठित
ब्लॉगर महज सस्ती लोकप्रियता हेतु इसका प्रयोग कर रहे हैं |बिना तथ्य खोजे अपने ब्लॉग या वेबसाइट पर खबरों को छापना उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि बिना गवाही के सजा सुनाना | भाई अविनाश को मैं वर्षों से जानता हूँ - प्रभात खबर के जमाने से | उनकी अब तो आदत बन चुकी है गलत और अधुरी खबरों को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना | और, हो भी क्यूं न, भाई का ब्लॉग जाना भी इसीलिए जाता है|

कल कुछ ब्लॉगर मित्रों से बात चल रही थी कि अविनाश आलोचना सुनने की ताकत नहीं है, तभी तो अपनी व्यकतिगत कुंठा से प्रभावित खबरों पर आने वाली 'कटु प्रतिक्रिया' को मौडेरेट कर देता है | अविनाश जैसे लोग जिस तरह से ब्लॉग विधा का इस्तेमाल कर रहे हैं, निश्चय ही वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग पर भी 'कंटेंट कोड' लगाने की आवश्यकता पड़े | अतः तमाम वेब पत्रकारों से अपील है कि इस तरह की कुंठित मानसिकता वाले ब्लॉगरों तथा मोडरेटरों का बहिष्कार करें, तभी जाकर आम पाठकों का ब्लॉग या वेबसाइट आधारित खबरों पर विश्वास होगा |
मित्रों एक पुरानी कहावत से हम सभी तो अवगत हैं ही –
'एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है', उसी तरह अविनाश जैसे लोग इस पूरी विधा को गंदा कर रहे हैं |

वीरेन्द्र जैन ने कहा…

काश यह बात बेनामी की जगह किसी नामवर ने कही होती