मप्र जलेस ने की भोपाल में भर्त्सना गोष्ठी
जनवादी लेखक संघ की मध्य प्रदेश इकाई ने महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति, पूर्व आइपीएस अधिकारी विभूति नारायण राय को तत्काल उनके पद से बर्खास्त करने की मांग की है। इसके साथ ही 'नया ज्ञानोदय' के संपादक रवींद्र कालिया को निकाले जाने की मांग करते हुए जलेस ने कहा है कि उन्हें न निकाले जाने की स्थिति में पत्रिका का बहिष्कार किया जायेगा। इस पत्रिका में लेखिकाओं के साथ समूचे लेखक समाज और साहित्यिक मर्यादा को तार-तार करने वाला साक्षात्कार छपा है। यह भूमंडलीकृत बाजारवाद का सबसे घिनौना चेहरा है, जहां घृणित सामंती अपमूल्यों को बेचा जा रहा है। प्रस्तावों में वि.वि. की सृजनपीठों पर बैठे साहित्यकारों से भी त्यागपत्र की मांग की गई है।
इस संदर्भ में भोपाल में संपन्न संगोष्ठी कि अध्यक्षता करते हुए उर्दू के साहित्यकार प्रोफेसर आफाक अहमद ने कहा कि उर्दू और अंग्रेजी मीडिया ने इसका नोटिस नहीं लिया है। उन्होंने कहा कि बड़े ओहदों पर तुच्छ मानसिकता वाले लोगों को बिठाने और उन्हें गैरजरूरी महत्व दिये जाने से ऐसी अभद्र घटनाएं घटती है। यह जनतांत्रिक देश है, ऐसी प्रवृत्तियों के मुखालिफ लेखक-कलाकार, बुद्धिजीवियों को ही नहीं, पूरे समाज को लामबंद करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज की खामोशी के लिए आनेवाली नस्लें हमें कठघरे में खड़ा करेंगी। संगोष्ठी से पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुवे करते हजुवे प्रो. सविता भार्गव ने विभूति नारायण राय द्वारा दिये गये साक्षात्कार के अंश पढ़कर सुनाये। अपनी प्रस्तावना में उन्होंने कहा कि ये अपकथन न सिर्फ कुलपति की मर्यादा, साहित्यिक-सांसकृतिक परंपरा के प्रतिकूल हैं, बल्कि गांधीजी के विचारों का भी अपमान करते हैं। समाज में लिंगभेदी घृणा फैलानेवाले विचारों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। राय द्वारा लेखिका की आत्मकथा को 'कितने बिस्तरों पर कितनी बार' कहकर शताब्दी वर्ष में अज्ञेय की स्मृति को भी तिरस्कृत किया है।
उर्दू के वरिष्ठ कहानीकार और संगीतज्ञ श्याम मुंशी ने कहा कि यह तुख़्मतासीर खानी बीज का प्रभाव है, जिसने राय से ऐसा करवा दिया। सब जानते हैं कि पुलिसिया संस्कृति दुर्भाग्य से गाली-गलौज की संस्कृति बन गयी है। ओहदे के लायक न होने के बावजूद जुगाड़ से ऐसा पद पानेवाले ही ऐसी गंदी बातें कह सकते है।
बीजीवीएस की आशा मिश्र ने कहा कि इस खोखले व्यक्ति की संरचना सामंतवादी-साम्राज्यवादी और भूमंडलीयकरण की विकृतियों से हुई है। यह जनवादी-प्रगतिशील समाज का हिस्सा नहीं हो सकता। उसे भविष्य में किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में बुलाये जाने पर पाबंदी लगनी चाहिए। आशा मिश्र ने पूछा कुलाधिपति डॉ. नामवर सिंह चुप क्यों हैं? हमें इस चुप्पी की तह में भी जाने की जरूरत है। माफी या इस्तीफा नहीं, हमें राय और कालिया की बर्खास्तगी चाहिए। 'तूलिका संवाद' के सचिव कहानीकार मनोज कुलकर्णी का कहना था कि आधुनिक स्त्री ने अपनी सेक्सुएलिटी को जितने बोल्ड तरीके से रखा है, उससे पुरुष सत्तावादी समाज हिल गया है। उन्होंने कहा कि राय के अंदर से उक्त साक्षात्कार में आदिम पुरुष बाहर निकलता दिखता है। धनवाद (झारखंड़) से आये डॉ. काशीनाथ चटर्जी ने कहा कि प्रगतिशीलता के झंडाबरदार इस समूचे घटनाक्रम से नदारत क्यों हैं, यह सवाल पूछा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि करोड़ों बेरोजगारों के देश में भारी पेंशन पानेवाले पूर्व नौकरशाहों के सत्ता पुनर्वास से सरकार बाज आये।
जलेस के राज्य सचिव रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डां. नामवर सिंह राय और कालिया के खिलाफ कठोर कार्यवाई करें या नैतिक जिम्मेदारी लें। उन्होंने इस बात पर कुछेक अखबारों की तटस्थता को शर्मनाक बताया। उन्होंने यह भी कहा कि साहित्य-कला-संस्कृति-शिक्षा में जहां-जहां आइएएस-आइपीएस बिठाये गये हैं, अधिकांश मामलों में वहा अपसंस्कृति ही विकसित हुई है।
वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने कहा कि यह सिर्फ घटना नहीं है। यह ऐसी वृत्ति और फिनेमिना है, जो कई सवाल खड़े करती है। यह बाजारवाद का युग है, जहा 'नया ज्ञानोदय' जैसी पत्रिकाएं साहित्य के अवमूल्यन का कारोबार करते हुए अपनी बिक्री बढ़ा रहीं है। उन्होंने कहा कि नकारात्मक चीजों से चर्चा में आने की विज्ञापनी बिमारी साहित्यकारों में घुस आई है। इसलिए दोनों में फ्यूडल वैल्यूज (सामंती मूल्यों) को बेचने का अपकर्म किया है। प्रशासनिक तबका मानने लगा है कि असली सरकार वही है। इस दंभ को स्वीकृति नहीं दी जा सकती। इसलिए साहित्यिक, सांस्कृतिका, शैक्षिक प्रतिष्ठानों में उनकी पदस्थापना न करने की मांग जायज है। उन्होंने कहा कि सन 1970 के आसपास संस्कृति को उद्योग बनाने की कोशिश हुई, जिसका इस्तेमाल राजनीतिक छवि निर्माण के लिए किया गया। उन्होने कहा कि यह दुर्भाग्यपुर्ण है कि कुछ लोग और संगठन लेखको की इस लड़ाई में भी सरकार की गोद में बैठे है। उन्होंने सवाल किया कि राय में ऐसी कौन-सी विशिष्ठता थी, जो उन्हें कुलपति के योग्य बनाती थी? लेखकों और अधिकांश अखबारों की ठंडी प्रतिक्रिया पर उन्होंने पूछा कि यदि हमें आपातकाल जैसी स्थिति से गुजरना पड़े तो क्या होगा, जबकि आप और हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कोताही बरत रहे हैं?
इस अवसर पर युवा कवयित्री नीलेश रघुवंशी, कवि राग तैलंग, गिरधर राठी, मध्य प्रदेश लेखिका संघ की अध्यक्ष उषा जायसवाल और केरल शास्त्र साहित्य परिषद के सोमनाथन ने भी अपनी उग्र प्रतिक्रियाएं दी। आभार अनवारे इस्लाम ने व्यक्त किया।
जलेस इन्दौर इकाई ने भी कराया विरोध दर्ज
जलेस इन्दौर इकाई की 28 अगस्त 2010 को संपन्न एक गोष्ठी में वरिष्ठ नाटककार व लेखक सनत कुमार ने सैमसंग प्रकरण व नया ज्ञानोदय के संपादक कालिया एवं विभूति नारायण राय की महिला विरोधी टिप्पणी की भर्त्सना करते हुवे साहित्य के बाजारीकरण की प्रवृत्तियों के खिलाफ एकजुटता के साथ लंबा वैचारीक संघर्ष चलाने की जरूरत को रेखांकित किया।
शनिवार, 11 सितंबर 2010
राय और कालिया की बर्खास्तगी जरूरी
लेबल:
साहित्यिक बाजारवाद
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें